इनर इंजीनियरिंग पुस्तक सारांश
सद्गुरु एक आध्यात्मिक व्यक्ति ही नहीं है बल्कि उनकी दृष्टि पर्यावरण व्यापार अंतर्राष्ट्रीय मामले और मनुष्य तथा समाज के मनोविज्ञान तक विस्तृत है। उनके तर्क सरल और अभिभूत कर देने वाले हैं।
गुरु का शाब्दिक अर्थ है वह जो अंधेरा मिटाएं लोक मान्यता के अनुसार गुरु वह नहीं है जो उपदेश दे अनुयाई बनाएं और लोगों की आस्था बदले। गुरु वह है जो यथार्थ से हमारा साक्षात्कार करवाए। हमारी आदत हो गई है कि हम या तो जो भूतकाल में हुआ उसे लेकर दुखी होते रहते हैं या जो भविष्य में होने वाला है उसे लेकर चिंतित रहते हैं यह दोनों ही सत्य नहीं है पहला आपकी याददाश्त का बोझ है और दूसरा कल्पना की उड़ान है केवल वर्तमान में जो है वही सत्य है। आजकल पॉजिटिव थिंकिंग यानी सकारात्मक सोच का बड़ा चलन हो गया है जैसे सकारात्मक सोच समस्याओं को हल करने वाला मंत्र है वास्तव में यह एक कलई है जो सच्चाई पर रंग पोत देती है। यह एक नींद की गोली है जो थोड़ी देर के लिए यथार्थ को भुला सकती है। थोड़े थोड़े सुधार से परिवर्तन नहीं आते न हीं नैतिकता और धर्म हमें बदल सकते हैं इसके लिए हमें अपनी प्रकृति को समझने की आवश्यकता है।
इस पुस्तक के दो भाग हैं एक भाग में हमने एक नक्शा बनाने की कोशिश की है और दूसरे भाग में उस नक्शे का प्रयोग करके आगे बढ़ने का रास्ता है। यहां पर न कोई अंतिम निष्कर्ष है और नहीं सिखाने की कोशिश है। सतगुरु कहते हैं कि लोग मुझे आधुनिक गुरु कहते हैं लेकिन मैं आपको बता दूं कि ना में आधुनिक होने प्राचीन मैं समकालीन हूं सच्चाई कभी बदलती नहीं और भाषा और तकनीकी कभी अंतिम नहीं होते। वे सम कालीन ही हुआ करते हैं।
मैसूर शहर में एक रिवाज है। यदि आपको कुछ करना है तो चामुंडी के पहाड़ियों पर जाइए। यदि आपको कुछ नहीं करना तो चामुंडी की पहाड़ियों पर चढ़ जाइये। यदि आप प्यार करते हैं तो चामुंडी की पहाड़ियां सबसे अच्छी है। यदि आप प्यार को तोड़ना चाहते हैं तो चामुंडी की पहाड़ियों पर जाइये।
एक दिन मैं भी चला गया। मुझे एक अद्भुत अनुभव हुआ जिस हवा में सांस ले रहा था और जिस चट्टान पर मैं बैठा था जैसे वह मेरा ही विस्तार थी और मेरे चारों और जो कुछ था मैं स्वयं उसका विस्तार था। साढ़े 4 घंटे बीत गए जब मेरी चेतना वापस लौटी तो मुझे लगा कि बस 10 मिनट ही हुए हैं ऐसी आनंदमई विपुलता मैंने कभी अनुभव नहीं की थी जो अनुभव किया वह शब्दों में नहीं बताया जा सकता थोड़े में बताना हो तो यह कह सकता हूं कि मैं पहाड़ी पर गया तो था लेकिन वापस कभी नहीं आया।
दक्षिण भारत के मैसूर शहर में हुआ जो अपने महलों की भव्यता और शानदार बगीचों के लिए जाना जाता है मेरे पिता एक चिकित्सक थे और माताजी घर संभालती थी। स्कूल मुझे कभी अच्छा नहीं लगा वहां पर टीचर जो पढ़ाते थे जीवन में उसकी कोई सार्थकता नहीं थी।
मैं सहायक को स्कूल के गेट से ही वापस भेज देता और खुद उल्टे पांव 1 घाटी की और गायब हो जाता। से में सांप कीड़े मकोड़े जैसी चीजों का अध्ययन करता। कुछ दिनों में मेरे माता-पिता को पता चल गया और उन्होंने मेरा वहां जाना बंद कर दिया स्कूल तो मुझे फिर भी नहीं जाना था। मैं दूर जंगल की ओर निकल जाता। किसी ऊंचे पेड़ पर चढ़ जाता और सुबह 9:00 से 4:00 स्कूल बंद होने के समय तक सबसे ऊंची शाख पर बैठकर झूलता रहता। मैं साइकिल पर 30-35 किलोमीटर दूर गांव की तरफ निकल जाता, कीचड़ मिट्टी से भर जाता, सांप मछलियां पकड़ता। और शाम को दिन भर में मैंने जो कुछ देखा होता उसे याद करने की कोशिश करता।
संदेह करना मेरी आदत थी माता पिता जब मंदिर जाते तो मैं उनसे पूछता भगवान कौन है? कहां पर है ऊपर है तो कितना ऊपर? मैं मंदिर के अंदर नहीं जाता था मेरी जगह वहां थी जहां लोग जूते निकालते थे।
स्कूल में मुझे बताते की धरती गोल है तो मैं कहता कि यदि गोल है तो ऊपर कौन है और नीचे कौन? टीचर मुझसे बात करते तो मैं जवाब नहीं देकर एकटक उन्हें देखता रहता था। इससे वे असहज हो जाते।
गर्मियों की छुट्टियों में हम बच्चे इकट्ठे होते तो हम घर के पिछवाड़े में जाकर एक खेल खेलते। एक कुआं था और उसमें सीधे कूदना होता था। कूदने के बाद खड़ी दीवार के सहारे ऊपर आना होता था। कोई सीढ़ियां नहीं थी। मैं इसमें अव्वल था। एक दिन लगभग 70 वर्ष का एक आदमी वहां पर आया। मैंने वह कुएं में कूद गया। मुझे लगा वह कभी वापस लौट नहीं पाएगा। लेकिन आश्चर्य की बात थी कि वह मुझसे भी ज्यादा तेजी से बाहर आ गया। मैंने उत्सुकतावश पूछा कि आपने ऐसा कैसे किया तो उस व्यक्ति ने कहा कि योग के द्वारा। मैं उसके साथ चल दिया। उनके आश्रम में मैंने योग सीखा बचपन में मुझे जगाना कोई आसान काम नहीं था उठाने के बाद में फिर सो जाता था यहां तक कि ब्रश करते करते मुझे नींद आ जाती थी लेकिन योग सीखने के बाद मैं 3:30 बजे खुद ही उठने लगा आज तक वही दिनचर्या है।
जब मैं आंखें खोलता तो हर चीज मुझे हैरान करती। एक चींटी, पत्ता, बादल फूल, अंधेरा लगभग हर चीज।
स्कूल के बाद मैं मैसूर यूनिवर्सिटी पहुंचा। सुबह के नाश्ते और रात के भोजन के बीच मेरा सारा समय किताबें पढ़ने में ही बीत जाता। मैंने होमर से लेकर मैकेनिक्स, फ्रांज काफ्का, कालिदास, दांते और डेनिस द मिनेस को पढ़ा। मां की इच्छा का सम्मान करते हुए मैंने अंग्रेजी साहित्य की क्लास में प्रवेश लिया लेकिन मैंने देखा अध्यापक वहां सिर्फ नोट्स लिखो आते थे और मैं एक स्टेनोग्राफर नहीं बनना चाहता था मैंने उनसे सौदा किया कि बेहतर होगा वह मुझे अपने नोट्स की फोटो सेट दे दे इसके बदले में मैं क्लास में नहीं आऊंगा लेकिन मेरी हाजिरी लग जाएगी अध्यापक मान गए।
यात्रा करना मुझे अच्छा लगता था। मैंने पूरा दक्षिण भारत मोटरसाइकिल पर घूम लिया, यहां तक कि नेपाल की सीमा तक पहुंचा। मैं हर चीज को जानना चाहता था लेकिन इसके लिए पैसे की जरूरत थी। पैसे कमाने के लिए मैंने मुर्गी पालन का काम किया जो पिताजी को अच्छा नहीं लगा। वह कहते थे कि तुम्हारे साथी इंजीनियर बन गए हैं। कहीं कहीं नौकरी कर रहे हैं और मैं लोगों को यह बताऊं कि तुम मुर्गी पाल रहे हो। इसके बाद मैंने एक कंस्ट्रक्शन कंपनी खोली जिसने काफी तरक्की की।
लेकिन अक्सर ऐसा होता था कि मैं घर के खाने की टेबल पर ही घंटों बैठा रह जाता। घरवालों को थक कर उठ जाना पड़ता। लेकिन अब वह मुझे जान गए थे। एक दिन एक स्थान पर मैं 13 घंटे तक बैठा रहा और मुझे लगा कि कुछ समय ही नहीं हुआ है। आंखें खुली तो मैंने पाया कि कुछ लोग मेरे पैर छू रहे थे और माला पहना रहे थे।
जब हम यह मानते हैं कि दुनिया में गरीबी और भुखमरी भाग्य का खेल है तो हम सच्चाई से मुंह छुपाते हैं। अगर किसी और का बच्चा भूखा है तो आप इसे भाग्य का खेल बता सकते हैं लेकिन यदि आपका बच्चा भूखा हो तो आप इसे भाग्य समझ कर बैठ नहीं जाएंगेआप इसके लिए कुछ प्रयास करेंगे।
आज से 100 साल पहले पोलियो से लाखों बच्चे अपाहिज होकर जिंदगी जीते थे। जिन महा -मारियों को पाप का कारण और भगवान की इच्छा बताया जाता था उनको जड़ से समाप्त कर दिया गया है। कहने को तो हमारे पंख नहीं है इसलिए हम उड़ नहीं सकते लेकिन जब इंसान ने कोशिश की तो वह आसमान में उड़ सका। ऐसा करते हुए मनुष्य ने प्रकृति का कोई नियम नहीं तोड़ा।
इंसान अपना मालिक खुद बन सकता है। यदि हम अपने शरीर पर नियंत्रण रखें तो लगभग 20% समस्याओं का हल कर सकते हैं। यदि अपने विचारों को नियंत्रित करें तो लगभग 50% समस्याओं का हल कर सकते हैं। यदि हम जीवन ऊर्जा को नियंत्रित करना सीख जाए तो शत-प्रतिशत समस्याओं का हल खोज सकते हैं। अपना भाग्य खुद बना सकते हैं।
अपना भाग्य खुद बनाने का मतलब यह नहीं है कि बाहर की चीजें हमारे अनुकूल होना शुरू हो जाएंगी क्योंकि बाहर की प्रत्येक चीज अपने उद्देश्य के लिए काम कर रही है।
अच्छा होना काफी नहीं है सही काम करना पड़ता है अगर आप अच्छे इंसान हैं तो क्या आप के बगीचे की तराई अपने आप हो जाएगी? बिल्कुल नहीं। जब आप खुद करेंगे तभी होगी।
जिम्मेवारी लेने का मतलब यह नहीं है कि दूसरे की गलती हम अपने ऊपर ले लें। मतलब है सचेत होना। सब जानते हैं की सांस लेने के लिए जरूरी ऑक्सीजन हमें पेड़ों से मिल रही है जो दूषित हवा हम छोड़ रहे हैं पेड़ों से अवशोषित कर रहे हैं हो सकता है इस तथ्य को हम जानते हो लेकिन इस बारे में हम संजीदा होते तो किसी को जंगल बचाने के लिए और वृक्षारोपण के लिए अभियान नहीं चलाना पड़ता। हम खुद ही ऐसा करते हैं।
जब मैं अमेरिका आया तो मैंने हर किसी को स्ट्रेस मैनेजमेंट के बारे में बात करते सुना मैं हैरान हुआ क्योंकि स्ट्रेस भी कोई मैसेज करता है क्या हम कीमती चीजों को मैनेज करते हैं जिससे हमारा परिवार बिजनेस आदि। ओमी गुस्से का कारण इस भ्रम में छिपा हुआ है कि गुस्सा करके हम हालात बदल सकते हैं लेकिन अनुभव यह बताता है कि अपना आपा खो कर आप कुछ भी नहीं बदलते हैं। चिकित्सा विज्ञान कहता है कि जब हम क्रोधित होते हैं तो हमारा पूरा शरीर विषाक्त हो जाता है।
जो अप्रिय घटनाएं बीते वक्त हमारे साथ हुई हैं अब उनका कोई अस्तित्व नहीं है। वे केवल यादें हैं और यदि हम यादों को झटक नहीं देते तो वह हमारे वर्तमान को बर्बाद करती रहती हैं । यदि हमारे साथ कुछ गलत हुआ है तो इसके बाद हमें कुछ समझदार हो जाना चाहिए था लेकिन यदि पुरानी यादों को हम जख्म की तरह साथ लेकर चलेंगे तो अपना ही नुकसान करेंगे। हम आज जो कुछ हैं वह अपनी वजह से हैं । यदि हम यह जिम्मेवारी स्वीकार कर लें तो भविष्य उज्जवल हो सकता है। प्रतिकूल परिस्थितियां कोई अभिशाप नहीं है। कचरा दुर्गंध भी फैला सकता है और उस पर फूल भी खिल सकते हैं और मीठे आम लग सकते हैं। सवाल यह है कि आप कचरे का करते क्या हैं? आक्रोश, गुस्सा, ईर्ष्या हिंसा और तनाव वे जहर है जिसे पीते आप हैं और उसका असर दूसरों पर चाहते हैं लेकिन ऐसा होता नहीं।
तार्किक बुद्धि कह सकती है की जिम्मेदारियां छोड़कर हम आजाद हो सकते हैं लेकिन ऐसा होता नहीं जिम्मेवारी लेकर हम आजाद होते हैं। जिम्मेवारी का मतलब होता है जिंदगी की गाड़ी में ड्राइवर सीट पर बैठना। तर्क के आधार पर हमने अपनी सोच को सीमित कर लिया है हम ऐसे पिंजरे में बंद है जिसका दरवाजा खुला है परंतु संभावनाओं को हम देखना नहीं चाहते यदि एक बीज अपने आप को बचाकर रखेगा तो नष्ट हो जाएगा वृक्ष बनने के लिए उसे रूपांतरण से गुजरना ही पड़ेगा। क्या यह हैरानी की बात नहीं है कि दुनिया में 700 करोड़ लोग हैं फिर भी अनेक लोग अकेलापन महसूस करते हैं?
योग क्या है?
इस शब्द को सुनते ही लोग समझते हैं योग का मतलब है खुद को असंभव मुद्राओं में स्थित करना हड्डियों में मरोड़ देना और मांसपेशियों की दांत लगा देना क्या यही योग है ज्यादातर लोग तो यही समझते हैं लेकिन यदि संक्षेप में कहूं तो योगा का अर्थ है बाहरी विश्व के साथ संपूर्ण तादातम्य में के साथ रहना सीखना। योग का अर्थ है अपनी चेतना का विस्तार करना।
संसार की ऊर्जा तो स्थिर है लेकिन विभिन्न इकाइयों में यह ऊर्जा अलग-अलग स्तरों पर काम करते हैं गुलाब के पौधे में यह ऊर्जा गुलाब का फूल खिलाती है गेंदे के पौधे में यह ऊर्जा गेंदे का फूल खिलाती है जो हाथ कभी मिट्टी के घड़े बनाया करते थे वो आज कंप्यूटर बना रहे हैं, अंतरिक्ष यान बना रहे हैं। मनुष्य ने अपने आप को अभूतपूर्व विस्तार दिया है।
आगे सद्गुरु लिखते हैं कि शरीर के चार स्तर हैं सबसे ऊपरी स्तर है अन्नमय कोश अर्थात् हमारा शरीर जो भोजन का संग्रह है। यह एक प्रकार का हार्डवेयर है। दूसरा स्तर है मनोमय कोश। डॉक्टरी से मनोविज्ञान कहते हैं यह हमारी सोच से संबंध रखता है। इसे आप सॉफ्टवेयर कह सकते हैं।
तीसरा स्तर है प्राणमय कोश या ऊर्जा शरीर
यदि इन दोनों में संतुलन रहे तो शरीर में कोई बीमारी नहीं रह सकती। योग और प्राणायाम यही संतुलन लेकर आते हैं और इनकी सहायता से अनेक बीमारियां ठीक भी हो जाती हैं। चौथा है विज्ञानमय कोश। यह हमारे इंद्रियों के अनुभव से बाहर है। एक पांचवां स्तर भी है। आनंदमय कोष यह भौतिक शरीर से बिल्कुल आगे का स्तर है।
हमारा शरीर सर्वश्रेष्ठ मशीन है। इसी मशीन से बाकी मशीनें बनी है सर्वश्रेष्ठ इसलिए है कि यह खुद चलती है सांस लेने के लिए हमें कुछ नहीं करना पड़ता। भोजन पचाने के लिए हम कोई कोशिश नहीं करते यह शरीर बीमारियों को भी खुद ठीक करने में सक्षम है। अनुभव शरीर के बाहर घटित होते हैं लेकिन उनका ज्ञान हमें अंदर से होता है। हमारे अंदर जो होता है उसके प्रति हम इतने संवेदनशील नहीं होते। आप अपने शरीर पर रेंगने वाली चींटी को अनुभव कर सकते हैं पर आपकी रगों में जो खून दौड़ रहा है उसे कभी अनुभव नहीं करते।
शरीर सीमाओं में रहता है लेकिन जीवन विस्तार पाना चाहता है। योग इसी विस्तार का नाम है योग में भगवान का जिक्र कहीं नहीं आता।
बहुत साल पहले मोबाइल फोन कंपनियों ने एक सर्वे करवाया था जिसे पता चला अधिकांश लोग मोबाइल फोन की क्षमता का केवल 7% ही प्रयोग करते हैं। अपने शरीर का तो हम केवल 1% ही प्रयोग करते हैं। हमारा शरीर हमारी स्थिति को बता देता है। योग और ध्यान के सरल अभ्यास से हम अपने शरीर को अधिक उपयोगी बना सकते हैं। अपने अनुभवों को उन्नत बनाने के लिए और प्रयासविहीन जीवन के लिए हमें प्रयास करना पड़ेगा।
आराम के महत्व को आराम करने वाला नहीं समझता सिर्फ काम करने वाला ही समझता है। उच्च कोटि के कलाकार बेहतरीन संगीत और नृत्य का सृजन करते हुए ऐसे लगता है जैसे उन्हें कोई प्रयास नहीं करना पड़ रहा लेकिन यह अवस्था निरंतर प्रयास करने से ही आती है।
हमारा अन्नमय शरीर धरती का हिस्सा है, धरती सोलर सिस्टम का हिस्सा है, सोलर सिस्टम यूनिवर्स का हिस्सा है इसलिए यूनिवर्स कीघटनाएं हमारे शरीर को भी प्रभावित करती हैं। बहुत से लोग वर्षा की भविष्यवाणी कर पाते हैं क्योंकि वह अपने शारीरिक तंत्र को बाहरी संसार से जोड़ लेते हैं। इसमें कोई चमत्कार की बात नहीं है। पशु पक्षियों को तो स्वभाविक रूप से प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वाभास हो जाता है। भारत में नाडी देखकर बीमारी का ठीक-ठीक आकलन कर देने वाले वैद्य पृथ्वी के पांच तत्वों से सामंजस्य बिठाना सीख जाते हैं।
भोजन का भी हमारी क्षमता पर बहुत प्रभाव पड़ता है हमें ऐसे भोजन करने चाहिए जिनके साथ हमारा शरीर सहज रहता हो। हमारे लिए कच्चा भोजन सबसे अच्छा है क्योंकि पकाने की प्रक्रिया में हम बहुत सारे एंजाइम्स को नष्ट कर देते हैं जिन्हें भोजन पचाने में सहायता करनी थी भोजन शरीर की जरूरत के अनुरूप होना चाहिए नए कि हमारी स्वाद की जरूरत के अनुसार। 4 से 6 घंटे तक भिगोए हुए बीज एक अच्छा भोजन है क्योंकि बीज अपने आप में एक संपूर्ण वृक्ष की संभावना लिए हुए होता है। एक बीज पूरी पृथ्वी को जंगल से ढक सकता है।
जो इंसान अपने अनुभव को विस्तार देना चाहते हैं उनके लिए जल्दी हजम होने वाला खाना जैसे फल, बिना तली हुई सब्जियां, अंकुर, वह देसी घी अच्छा है। पकाने में भोजन के पौष्टिक तत्व नष्ट हो जाते हैं। और उसके पचने में देर लगती है हमारे दांत, आंतें, पेट में उत्पन्न होने वाले अम्ल और क्षार मांसाहारी भोजन के लिए तो बिल्कुल भी नहीं बने हैं। यदि आप मांसाहार करना ही चाहते हैं तुम मछली सबसे उपयुक्त है क्योंकि मछली उत्पत्ति के आरंभ में पैदा होने वाला जीव है उनका मांस इतना जटिल नहीं है जितना कि विकसित जानवरों का। महीने में दो बार उपवास करना भी शरीर के लिए अच्छा है प्राचीन समय में भारत में एकादशी का व्रत इसीलिए प्रचलित किया गया था। खुद खाने से पहले यदि हम चीटियों या अन्य जानवरों को भोजन कराते हैं तो यह हमारी चेतना को विस्तार देता है। हमें कितना खाना है और कितना सोना है इसका निर्णय शरीर को करने दीजिए कैलोरी गिन कर खाना और घंटे गिन कर सोना बहुत ही बेतुकी बात है। जहां तक सोने का सवाल है बिना तकिए सीधा सोना सबसे अच्छा और यदि तकिया जरूरी है तो बहुत ही पतला होना चाहिए।
यौन आकर्षण प्रकृति के लिए आवश्यक है क्योंकि यह नहीं होता तो कोई सृष्टि को आगे बढ़ाने में रुचि ही नहीं लेता। युवा अवस्था में हार्मोन अन्य सभी विचारों का अपहरण कर लेते हैं। आयु बढ़ने के साथ-साथ हार्मोन का बुखार उतर जाता है। एक बच्चे के लिए भूख मिटाना ही सबसे बड़ा शारीरिक सुख है। लेकिन मनुष्य ने यौन सुख को जीवन के केंद्र में ला दिया है। जबकि अन्य जीवों के लिए ऐसा नहीं है उनके लिए यह केवल शरीर के स्तर पर है। लेकिन मनुष्य जब शारीरिक संबंधों को बुद्धि के स्तर तक ले जाता है तब समस्या होती है। यह सब हार्मोन के कारण है।
यह शरीर हमारे ऊपर धरती का उधार है जब यात्रा पूरी हो जाएगी तो धरती इसे वापस ले लेगी। मृत्यु देह का अंत है जीवन का नहीं।
जीवन विचार करने का भी विषय नहीं है यह मनोविज्ञान भी नहीं है विचार क्या है विचार सूचनाएं और यादें हैं जिन्हें आप गोल-गोल घुमाते रहते हैं जीवन जीने की चीज है विचार करने की नहीं। अंतहीन सृष्टि में यह पृथ्वी एक रेत के कण के समान है। पृथ्वी पर आप एक रेत के कण के समान हैं और आपका विचार समस्त विचारों में एक रेत के कण के समान है उसका महत्व है क्या है?
आपकी पहचान आपके विचारों को व्यक्त करती है पहचान आपका शरीर, लिंग, परिवार, योग्यता समाज, वंश, जाति, आस्था, समुदाय या राष्ट्रीयता- जो कुछ भी, तब आपके विचार भी वैसे ही उत्पन्न होने लगते हैं।
योगिक वर्गीकरण के अनुसार मन की सोलह दशायें हैं । इनको चार श्रेणियों में बांटा जा सकता है पहला है विवेक। इसके कारण हम दरवाजे और दीवार के बीच भेद कर पाते हैं। दूसरा है मन जिसका संबंध स्मरण शक्ति से है, जो सूचनाएं एकत्र करता है। हमारे पास इतनी तेजी से सूचनाएं आ रही हैं कि लगभग भ्रमित कर देती हैं। तीसरा जागरूकता ( चित्त) जो की बुद्धि और स्मरण शक्ति से आगे है। जागरूकता हमें सचेत रखती है। चौथी श्रेणी है अहंकार जो पहचान हम अपने लिए तय करते हैं।
धर्मों ने जीवन को सही और गलत में बांट दिया है सही को नैतिक और गलत को अनैतिक की श्रेणी में रख दिया गया है इसके कारण हमारे विचार जड़ हो जाते हैं। उनमें स्वतंत्रता नहीं रहती हम निर्धारित पूर्वाग्रहों से प्रेरित होकर जीते रहते हैं इसीलिए दुनिया में धार्मिक स्थलों में भीड़ रहती है क्योंकि मानव जाति अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरी करने में भी अपराध भाव से भर जाती है। यदि कोई व्यक्ति आध्यात्मिक है तो वह समुद्र के किनारे बैठेगा, पेड़ की छांव में बैठेगा, फूलों को निहारेगा। फिर वह धार्मिक स्थलों पर नहीं जाएगा।
लोग अक्सर यह कहते सुने जाते हैं कि उनका दिल कुछ कहता है और दिमाग कुछ और। दिमाग का संबंध विचारों से है और दिल का भावनाओं से। योग में जैसा आप सोचते हैं वैसा ही आप अनुभव करते हैं। विचार अपने आप को जल्दी से बदल सकते हैं लेकिन भावनाओं को समय लगता है जैसे कोई व्यक्ति आपके विचार में अच्छा इंसान है तो आपकी भावनाएं भी उसके लिए अच्छी होंगी लेकिन अचानक वह आपके साथ कुछ गलत कर देता है तो वैचारिक तौर पर आप उसे गलत मान लेंगे लेकिन भावनाओं को गलत मानने में समय लगेगा कुछ घंटे लग सकते हैं दिन और महीने भी लग सकते हैं भावनाएं खुद को धीरे-धीरे बदलती हैं। लेकिन यह दोनों चीजें उतनी ही अलग है जितना गन्ने से गन्ने का रस।
लोगों ने अपनी शारीरिक मनोवैज्ञानिक भावनात्मक आर्थिक और सामाजिक जरूरतों को पूरा करने के लिए 'प्यार' शब्द का आविष्कार कर लिया है। प्यार कोई ऐसी चीज नहीं है जो कोई किसी के साथ करे। आप एक फूल को प्यार कर सकते हैं और फूल को पता भी नहीं होता। लेन देन को आप प्यार नहीं कह सकते।
सद्गुरु कहते हैं कि दर्द स्वभाविक है और जरूरी भी है ताकि हम यह जान सकें कि समस्या कहां है? लेकिन कष्ट होना स्वभाविक नहीं है यह हमारे ऊपर निर्भर करता है।
प्रत्येक मनुष्य ऊर्जा का स्वरूप है। वैज्ञानिक कहते हैं कि ब्रह्मांड की ऊर्जा अक्षय है। जो लोग आस्था को मानते हैं वे इसे परमात्मा कह देते हैं। योग स्वयं को विस्तार देने की प्रक्रिया है । यह ईश्वर को बीच में नहीं लाता लेकिन उसके अस्तित्व को इंकार भी नहीं करता। जीवन का उद्देश्य यही है कि हम अपनी संभावनाओं को सर्वोच्च शिखर तक ले जाएं। यह कर्म के माध्यम से होता है। कर्म शरीर से भी हो सकता है सोच से भी हो सकता है और ऊर्जा से भी हो सकता है।
हमारा कर्म हमारा सॉफ्टवेयर है। जैसा हम लिखेंगे वैसा ही बनेगा। हमारा यह सॉफ्टवेयर जीवन भर के अनुभवों के आधार पर बना है। वही हमारा व्यक्तित्व बन जाता है। सबके सॉफ्टवेयर अलग-अलग हैं। मछली बनाते समय उठने वाली गंध एक व्यक्ति के लिए खुशबू है और दूसरे के लिए बदबू।
क्रिया योग के द्वारा अनुभूति का विस्तार संभव है लेकिन इसके लिए अनुशासन की जरूरत है।
हमारे शरीर में 114 चक्र हैं दो शरीर के बाहर हैं और 112 शरीर के अंदर हैं। इनमें से 7 चक्र प्रमुख है अधिकतर लोगों में इनमें से तीन चक्र ही सक्रिय रहते हैं।
यह सात चक्र हैं मूलाधार, स्वाधिष्ठान मणिपूरक, अनाहत, विशद्धि, आज्ञा और सहस्त्रसार- इन्हीं के माध्यम से हमारे शरीर की ऊर्जा- जैसे क्रोध, दुख, शांति, खुशी और आनंद- ये आपकी जीवन ऊर्जा की अभिव्यक्तियां हैं। अगर आपकी ऊर्जा मुख्यतः मूलाधार में है तो भोजन और नींद ही आपके जीवन में प्रमुख होंगे। यदि आपकी उर्जा स्वाधिष्ठान में सक्रिय है आपके जीवन में खुशी का विस्तार ज्यादा होगा। यदि आपकी उर्जा मणिपूरक के स्तर पर अधिक है तो आप बहुत सक्रिय रहते हैं। कई काम आप एक साथ कर सकते हैं। यदि आपकी उर्जा अनाहत में प्रमुखता से हैं तो आप बहुत ही रचनात्मक हो जाते हैं। आपकी ऊर्जा विशुद्धि चक्र में स्थित हो तो आपकी उपस्थिति प्रभावशाली हो जाती है। यदि आपकी ऊर्जा आज्ञा चक्र में प्रधानता से हैं आपका बौद्धिक स्तर बहुत ऊंचा होता है। सहस्त्र सार चक्र सक्रिय होने पर एक आनंद का विस्फोट होता है क्योंकि यह अस्तित्व का उच्चतम शिखर है।
ऊंचे और नीचे चक्र कुछ नहीं होते। चक्रों की तुलना करना ऐसा ही है जैसे किसी इमारत की बुनियाद की तुलना छत से करना। इमारत की उम्र स्थायित्व और मजबूती छत पर नहीं बुनियाद पर निर्भर करती है। दोनों का महत्व अलग-अलग है।
अंतिमअध्याय में सद्गुरु उन स्थानों की भी बात करते हैं जहां अपनी ऊर्जा को उठाना सहज हो जाता है। कैलाश पर्वत और केदारनाथ ऐसे ही स्थान हैं। हिमालय में ऐसे बहुत से स्थान हैं इसीलिए साधक आमतौर पर हिमालय की ओर रुख करते थे। चीन प्राचीन भारतीय मंदिर भी ऐसे ही स्थान थे जहां कोई पूजा पाठ या प्रसाद नहीं होते थे बल्कि ऐसे स्थान थे जहां जाकर मनुष्य असीम शांति का अनुभव करता था।
ध्यान लिंगम ऐसी ही एक स्थापना है जहां कुछ देर बैठ कर मनुष्य सहजता से अपनी चेतना को ऊंचे स्तर पर ले जा सकता है। पुस्तक के उपसंहार में सद्गुरु समाधि की व्याख्या करते हैं समाधि दो प्रकार की होती है सविकल्प और निर्विकल्प। यह आनंद की पराकाष्ठा है फर्क इतना है कि सविकल्प समाधि में मनुष्य को पता रहता है कि उसका शरीर है परंतु निर्विकल्प समाधि में मनुष्य शरीर के अनुभवों से अतीत हो जाता है। उसे सुख दुख, दर्द, भूख, प्यास जैसे अनुभव भी नहीं होते। समाधि का अभिप्राय यह नहीं है कि मनुष्य आवागमन के चक्र से मुक्त हो जाता है। समाधि से वापस आने पर मनुष्य सामान्य जीवन में प्रवेश कर जाता है।
अंत में थोड़ी सी बात तंत्र के बारे में। तंत्र भी एक विज्ञान है जिसमें चमत्कार संभव हैं जैसे किसी सुदूर स्थित व्यक्ति को विचार की शक्ति से कोई चीज भेज देना। दूसरे के मन के विचार जान लेना। फोटो देखकर आदमी के जीवन में हुई घटनाओं का लेखा-जोखा प्राप्त कर लेना और भविष्य की घटनाओं का भी अनुमान लगा लेना। एक ही समय पर दो स्थानों पर उपस्थित हो जाना। विचार की शक्ति से कोई भी चीज उत्पन्न कर देना। यह योगिक क्षमताओं के नकारात्मक उपयोग हैं जिन्हें लोग अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग किया करते हैं। यह एक तरह की तकनीकी है इसका सदुपयोग भी हो सकता है और दुरुपयोग भी। गुरु गोरखनाथ तंत्र विद्या के अग्रणी साधक कहे जाते हैं।
सद्गुरु अपनी बात का समापन कुंडलिनी शक्ति पर चर्चा के साथ करते हैं कुंडलिनी का अर्थ है गोल आकार में सोया हुआ सांप। सोया हुआ सांप अपनी क्षमता में सीमित होता है लेकिन जागृत होने पर अपनी शक्ति