इंद्रा नूई पुस्तक समीक्षा
मैं सातवें आसमान पर थी। यह एक साधारण उपलब्धि नहीं थी। पेप्सिको की अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष। वाह! लबालब जोश से भरी हुई मैं तेजी से कार चला रही थी।
मैंने रसोई में प्रवेश किया और अपनी चाबी और बैग काउंटर पर पटक दिये। मैं उत्साह से काँप रही थी - इसलिए सभी को बताने के लिए बेचैन हो रही थी ।
तब मेरी माँ से मेरा सामना हुआ। "मेरे पास बहुत ही अविश्वसनीय खबर है, मैंने कहा!" तो खबर इंतजार भी कर सकती है। मां ने कहा, "मैं चाहती हूँ कि पहले तुम बाजार जाओ और दूध लेकर आओ।
"तुमने राज को दूध लेने के लिए क्यों नहीं कहा?" मैंने पूछ ही लिया। मुझे लगा वह अभी अभी घर आया है थका हुआ भी था। इसलिए मैं उसे परेशान नहीं करना चाहती ।
"मैंने चाबियां उठाईं, कार में वापस गयी और एक मील दूर जाकर में 2 किलो दूध लेकर आई।
जब मैं फिर से रसोई में गयी तो मैं पागल हो रही थी। मैंने प्लास्टिक की बोतल को काउंटर पर पटक दिया।
"मैं अभी-अभी पेप्सिको का अध्यक्ष बनी हूँ। और आप ठहर कर मेरी बात भी नहीं सुन सकती।" मैंने जोर से कहा।
तुम्हें तो यही पड़ी थी कि मैं दूध लेने जाऊं।"
मां ने पलटकर कहा "मेरी बात सुन लो। तुम राष्ट्रपति या पेप्सिको की कुछ भी हो सकती हो। लेकिन जब घर आती हो , तो एक पत्नी एक मां और बेटी होती हो। कोई और तुम्हारी जगह नहीं ले सकता है। इसलिए इस राजमुकुट को गैरेज में छोड़ कर आया करो।"
एक बहुराष्ट्रीय कंपनी की अध्यक्ष से ऐसी दो टूक बात एक मां ही कह सकती थी।
भारत में पैदा हुई इंदिरा कृष्णमूर्ति नूई एक वरिष्ठ बिज़नेस एग्जीक्यूटिव और 2006 से 2018 तक पेप्सिको कंपनी की अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी थी। आजकल वे कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के सदस्य और सलाहकार हैं। पेप्सिको खाद्य और पेय पदार्थों के व्यवसाय में संलग्न दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है। प्रसिद्ध पत्रिका फोर्ब्स की ‘दुनिया की प्रभावशाली महिलाओं’ की सूची में उनका नाम लगातार कई साल तक आता रहा।
सन 2014 में वे फ़ोर्ब्स के इस सूची में 14वें स्थान पर थीं। इसके अलावा वे येल कारपोरेशन में सक्सेसर फेलो, न्यूयॉर्क फेडरल रिजर्व के निदेशक बोर्ड की की निदेशक, कैटेलिस्ट के बोर्ड और लिंकन प्रदर्शन कला केंद्र की एक सदस्य रहीं। इंद्रा एइसेन्होवेर फैलोशिप के न्यासी बोर्ड की सदस्य हैं और यू.एस-भारत व्यापार परिषद में भी अपनी सेवाएँ दी हैं।
इंदरा नूई का जन्म 28 अक्टूबर 1955 में तमिल नाडु के मद्रास शहर (वर्तमान में चेन्नई) में एक तमिल परिवार में हुआ था। उनके पिता ‘स्टेट बैंक ऑफ़ हैदराबाद’ में कार्यरत थे और उनके दादा जिला न्यायाधीश थे। नूई की प्रारंभिक शिक्षा मद्रास के होली एन्जिल्स एंग्लो इंडियन हायर सेकेंडरी स्कूल में हुई।
इसके बाद उन्होने सन 1974 में मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की और फिर IIM कोलकाता, में दाखिला लिया जहाँ से सन 1976 में उन्होंने प्रबंधन में स्नात्त्कोत्तर किया। इंदिरा नूई डिबेट में बहुत अच्छी थी। इनके दादा पिता और मां सभी इनकी पढ़ाई में लगातार रूचि लेते थे और घर में अनुशासन का वातावरण था।
नूई ने भारत में अपना करियर जॉनसन एंड जॉनसन के साथ प्रारंभ किया और प्रोडक्ट मेनेजर के तौर पर कंपनी को अपनी सेवाएं दीं। उन्होंने टेक्सटाइल फर्म ‘मेटूर बर्डसेल’ के साथ भी कार्य किया। इसके बाद इंद्रा ने सन 1978 में अमेरिका स्थित प्रसिद्ध येल यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया जहाँ से उन्होंने ‘पब्लिक और प्राइवेट मैनेजमेंट’ का अध्ययन किया।
इंदिरा नूई ने सीखना कभी बंद नहीं किया। येल यूनिवर्सिटी में अध्ययन के दौरान उन्होंने ‘बूज एलन हैमिलटन’ में समर इंटर्नशिप भी किया। सन 1980 में उन्होंने येल से अपनी प्रबंधन की पढ़ाई की और अमेरिका में कार्य करने का फैसला किया और बोस्टन कंसल्टेशन ग्रुप ज्वाइन कर लिया तथा ‘मोटोरोला’ और ‘एसिया ब्राउन बोवेरी’ जैसी कंपनियों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। जब उन्होंने पहला इंटरव्यू दिया तो इनके पास एक ठीक-ठाक ड्रेस भी नहीं थी। इंद्रा ने वर्ष 1986-90 के बीच मोटोरोला कंपनी में कॉरपोरेट स्ट्रैटजी के उपाध्यक्ष के तौर पर कार्य किया और मोटोरोला के ऑटोमोटिव और इंडस्ट्रियल इलेक्ट्रॉनिक्स के विकास की जिम्मेदारी संभाली।
इंदिरा नूई ने जहां भी काम किया उत्पाद की पूरी प्रक्रिया का मौके पर जाकर अध्ययन किया।
इंद्रा नूई सन 1994 में पेप्सिको में शामिल हुईं और सन 2001 में कंपनी का अध्यक्ष और मुख्य वित्त अधिकारी (सी.एफ.ओ.) बनायी गयीं। वे पेप्सिको इंद्रा ने पेप्सीको के पुनर्गठन का भी नेतृत्व किया जिसमें शामिल हैं जिसमें 1998 में ट्रोपिकाना का अधिग्रहण और 2001 में क्वेकर ओट्स कंपनी का विलय
फार्च्यून पत्रिका ने सन 2014 में उन्हें ‘दुनिया की प्रभावशाली व्यवसायिक महिलाओं’ में तीसरे स्थान पर रखा।
सन 2001 में इंद्रा पेप्सिको का मुख्य वित्त अधिकारी (सी.एफ.ओ.) बनाई गयीं जिसके बाद कंपनी का लाभांश 2.5 अरब डॉलर से बढ़कर 6.5 अरब डॉलर पहुँच गया ।
सन 2007 और 2008 में फोर्ब्स ने उन्हें ‘दुनिया की प्रभावशाली महिलाओं’ के सूची में स्थान दिया। सन 2008 में फ़ोर्ब्स ने उन्हें ‘सबसे प्रभावशाली महिलाओं’ की सूची में तीसरा स्थान और 2014 में तेरहवां स्थान दिया।
नूई येल कारपोरेशन में ‘सक्सेसर फैलो’ हैं। वे वर्ल्ड इकनोमिक फोरम, इंटरनेशनल रेस्क्यू कमेटी (कैटेलिस्ट) और लिंकन सेण्टर फॉर द परफोर्मिंग आर्ट्स के संस्थापक बोर्ड की सदस्य हैं।
पेप्सिको की (सी.इ.ओ.) के तौर पर इंद्रा नूई को वेतन के रूप में लगभग 1.7 करोड़ अमेरिकी डॉलर दिया गया। सन 2014 तक भारतीय रुपए में उनका वेतन बढ़कर लगभग 144 करोड़ सालाना था।
कई वर्षों तक इंदिरा नूई का नाम फॉर्ब्स और फार्च्यून पत्रिकाओं की प्रभावशाली महिलाओं की सूची में शामिल रहा।
सन 2008 में उन्हें ‘अमेरिकन एकेडेमी ओफ आर्ट्स एंड साइंसेज’ के फ़ेलोशिप के लिए चुना गया। जनुअरी 2008 में उन्हें अमेरिका–इंडिया बिज़नस कौंसिल का अध्यक्ष चुना गया।
सन 2007 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया। इतना महत्वपूर्ण पुरस्कार पाने पर भी इंद्र नूई को एक भी व्यक्ति ने फोन नहीं किया। आप कितने भी बड़े आदमी बन जाए यदि आप दूसरे लोगों में दिलचस्पी नहीं लेते तो कोई आपमें भी दिलचस्पी नहीं लेता।
इंद्रा नूई राज कुमार नूई से विवाहित हैं। नूई दंपत्ति की दो बेटियाँ प्रीथा और तारा हैं।
इंदिरा नूई यह मानती कि हैं कि कॉरपोरेट नेतृत्व में महिलाओं को उनका उचित स्थान नहीं मिला है यही नहीं इन्हें यह भी शिकायत है कि महिला कार्यकारी अधिकारियों को उनके समकक्ष पुरुषों से हमेशा कम वेतन मिलता रहा है। इंदिरा नूई का मानना है कि महिलाओं के लिए बच्चे और परिवार एक बड़ी जिम्मेदारी होती है इसलिए काम करने के स्थान पर या उसके आसपास बच्चों की देखभाल करने की व्यवस्था भी होनी चाहिए पेप्सी में रहते हुए इन्होंने पेपस्टार्ट नामक ऐसी ही संस्था की स्थापना की जो बहुत लोकप्रिय हुई। इस पुस्तक की विशेषता यह है कि इंदिरा नूई न तो अपने गुणों को बढ़ा चढ़ा कर पेश करती है और ना ही दूसरों की आलोचना करती हैं। वे सिर्फ काम की बात करती हैं।
इस किताब में उल्लेख किए जाने वाले व्यक्ति स्थान आदि सभी अमेरिकी पृष्ठभूमि से आते हैं। इसके अतिरिक्त पेप्सीको उनके आगमन से एक सौ आठ वर्ष पहले से अस्तित्व में थी। एक ठंडा पेय बनाने वाली कंपनी में लाभांश बढ़ाने के अलावा कुछ नया करने की चुनौती उपलब्ध नहीं होती। उनकी आत्मकथा आंकड़ों, समीक्षाओं, बैठकों अधिग्रहण और प्रस्तुतियों का एक अनवरत विवरण है।
इसलिए पुस्तक में थोड़ी नीरसता है परंतु जो महिलाएं अपने व्यवसाय में आगे बढ़ना चाहती हैं उनके लिए यह पुस्तक प्रेरक हो सकती है। नूई उपनाम उन्होंने मंगलौर के अपने छोटे से गांव के पीछे रखा।