चार वादे पुस्तक सारांश
चार समझौते (दी फोर प्रोमीसेज )
बेहतरीन किताब है 8 साल तक लगातार न्यूयॉर्क टाइम्स बेस्ट सेलर रही है इसका 38 भाषाओं में अनुवाद हो चुका है और करोड़ों प्रतियां बिक चुकी हैं। एक बार नहीं कई बार पढ़ने लायक ह।
डॉन मिगुएल रुइज़ का जन्म ग्रामीण मेक्सिको में हुआ था, जो 13 बच्चों में सबसे छोटे थे। उन्होंने मेडिकल स्कूल में भाग लिया, और एक सर्जन बन गए। एक घातक दुर्घटना से बचने के बाद उन्होंने अध्यात्म की ओर रुख कर लिया।
लेखक ने जीने के लिए चार सिद्धांत निर्धारित किए हैं:
अपने वचन के साथ त्रुटिहीन रहें।
दूसरों के वचनों को व्यक्तिगत रूप से बिल्कुल भी न लें।
धारणा के शिकार न बनें।
हमेशा अपना सबसे बेहतरीन करो।
हमारा वातावरण हमें बचपन से ही बंधक बनाता है और यह हमें जड़वत जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है।
माता-पिता, सहपाठी, शिक्षक, धर्म, ये सभी प्रभाव नियमों का एक समूह स्थापित करते हैं। बच्चों के रूप में, हमारा उन पर कोई अधिकार नहीं है। जब हम अच्छा करते हैं तो हमें पुरस्कृत किया जाता है और जब हम लाइन से बाहर निकलते हैं तो दंडित किया जाता हैऔर आप ऐसे व्यक्ति बन जाते हैं जो अस्वीकृति से डरते हैं और समाज के नियमों पर सवाल उठाने की हिम्मत नहीं करते।
पुस्तक उन विश्वासों और समझौतों से व्यक्तिगत स्वतंत्रता की वकालत करती है जो हमने अपने और दूसरों के साथ किए हैं जो हमारे जीवन में सीमायें और दुख पैदा कर रहे हैं।
चार समझौते हैं:
1 - अपने वचन के साथ निष्पक्ष रहें।
ईमानदारी से बात करें। स्पष्टता से से वही कहे जो हम कहना चाहते हैं। अपने खिलाफ बोलने या दूसरों के बारे में गपशप करने के लिए शब्दों का प्रयोग करने से बचें। शब्दों में शक्ति होती है इसलिए उनका इस्तेमाल सावधानी के साथ करें। शब्द दो धारी तलवार है यह एक सुंदर सपने का निर्माण भी कर सकते हैं और किसी का जीवन तबाह भी कर सकते हैं। इतिहास हमें बताता है कि किस प्रकार हिटलर के शब्द नरसंहार का कारण बने। शब्द एक बीज है और हमारा दिमाग बहुत उपजाऊ भूमि है। इसमें खुशियों और विपुलता के बीज फलते फूलते हैं तथा नफरत और भेदभाव के बीज भी अंकुरित हो जाया करते हैं। शब्दों का असर जादुई होता है। मान लीजिए हम दिन भर काम करके थके हारे माइग्रेन के भयंकर दर्द के साथ दफ्तर से वापस आते हैं और एक छोटा सा बच्चा जो हमारे इंतजार में गा रहा है नाच रहा है और उछल कूद कर रहा है हम परेशान हो जाते हैं और क्रोध में आकर कहते हैं बंद करो यह बकवास। जाहिर है कि पिता के शब्दों का अर्थ वास्तव में यह नहीं है। शायद उसे कहने के बाद अफसोस भी हुआ हो। यह शब्द उस समय पिता की मानसिक स्थिति को दर्शाते हैं। लेकिन बच्चे का क्या होगा उस पर क्या असर पड़ेगा? शायद वह यह समझे कि उसे नाचना नहीं आता। शायद वह यह समझे कि वह बेसुरा है। शायद वह जीवन में कभी दोबारा गाने की कोशिश ना करे। ऐसे ही बिना नपे तुले शब्दों का प्रयोग हम दूसरों के साथ भी करते रहते हैं।
एक और उदाहरण देते हैं मान लीजिए कि आप सुबह-सुबह नहा धोकर तैयार हो रही हैं अपनी मनपसंद और नई ड्रेस पहनी है और उल्लास से भरी हुई आईने को देख रही हैं कितनी देर में आप की एक सहेली आती हैं और टिप्पणी कर देती हैं " क्या हुलिया बना रखा है? बिल्कुल झल्ली लग रही हो" अचानक कहीं गई यह बात सच बनकर हमारे जेहन में उतर जाती है। इसके बाद आपका उज्जवल दिन नकारात्मक विचारों में गुजर जाता है। हो सकता है आप उससे अधिक सुंदर लग रही थी जिसको वह सहन नहीं कर सकी। नकारात्मकता का यह है जहर कई लोग कई प्रकार से आपके जीवन में जब तब उतारते रहते हैं। हम अपने सहयोगी और आसपास के लोग बदल कर इस नकारात्मकता के चारों और एक दीवार खींच सकते हैं। नकारात्मकता को दोस्ती पसंद है जिन लोगों के अपने जीवन में निराशायें हैं वे इसे दूसरों में बांटते रहते हैं। वे चाहते हैं कि दूसरे भी उनके नीचे स्तर पर आ जायें। इससे बचने के लिए हमें गप बाजी और पीठ पीछे दूसरों की चुगली करने से बचना चाहिए। जब हम दूसरों के बारे में चटखारे लेकर नकारात्मक बातें फैलाते हैं तो यह नकारात्मक बातें लौट कर हमारे पास आती हैं क्योंकि संसार का यह नियम है कि जो हम दुनिया को देते हैं वही हमें मिलता है।
2 - व्यक्तिगत रूप से कुछ भी न लें।
दूसरे जो करते हैं वह आपकी वजह से नहीं है। दूसरे जो कहते और करते हैं वह उनकी अपनी वास्तविकता, उनके अपने स्वप्न का दर्पण है। जब आप दूसरों की राय और कार्यों से प्रतिरक्षित होते हैं, तो आप अनावश्यक पीड़ा के शिकार नहीं होंगे। दूसरों की बातों को जब हम व्यक्तिगत रूप से लेते हैं तो वह हमारे अंदर उतर जाती हैं और जहर की तरह फैल जाती हैं। यह बातें हमारे अवचेतन मन में अंकित होती रहती हैं। जब हम अपने बारे में नकारात्मक धारणा ही बनाते हैं तो अवचेतन मन हमारे लिए उनके अनुरूप ही परिस्थितियों का निर्माण करने लगता है। हर व्यक्ति अपने ही स्वप्न में जीता है और जो राय वह हमारे बारे में रखता है वास्तव में वह उसके अपने बारे में है। दूसरों के भावनात्मक कचरे को अपनी झोली में मत भरिए। दूसरे लोग अपने कष्टों के लिए समर्थन की तलाश में रहते हैं। दूसरे क्या कहते हैं और सोचते हैं यह उनकी समस्या है इसे हम अपनी समस्या क्यों बनाएं।
3 - धारणा मत बनाओ।
प्रश्न पूछें और जो आप वास्तव में चाहते हैं उसे व्यक्त करने का साहस खोजें। गलतफहमी और नाटक से बचने के लिए जितना हो सके दूसरों के साथ स्पष्ट रूप से संवाद करें। इंसानों के रूप में हमें धारणाएं बना लेने की आदत पड़ जाती है। जैसे आपका कोई प्रिय मित्र है वह कई दिनों तक आपसे बात नहीं करता तो हम यह मानते हैं कि वह स्वार्थी है अब उसका काम निकल गया है उसकी दिलचस्पी मुझ में कम हो गई है हो सकता है वह स्वयं किसी बड़ी तकलीफ से गुजर रहा हो। हो सकता है उस पर कार्य और जिम्मेदारियों का बोझ अचानक बढ़ गया हो। अच्छा है हम ही आगे बढ़कर सवाल पूछें और अपने भ्रम को दूर करें। सच्चाई तो यह है कि हम भ्रम दूर करना ही नहीं चाहते हम उसे सच मान लेते हैं और वैसे ही व्यवहार करने लग जाते हैं। जितना हम नकारात्मक सोचते जाते हैं उतना ही विषाक्त होते चले जाते हैं। रचनात्मक सोच कर हम इस परिस्थिति से बाहर आ सकते हैं। हमारी धारणाएं ही ही हमारे जीवन में दुख और नाटक की कारण बन जाती हैं। किसी से अपेक्षाएं मत रखिए। किसी को बदलने की कोशिश मत कीजिए। व्यक्ति को उसकी संपूर्णता में उसकी कमियों के साथ स्वीकार कीजिए। इसी में खुशी है।
जब भी आपको किसी पर संदेह हो तो सवाल पूछ कर उसे दूर कर लीजिए लेकिन धारणाएं मत बनाइए। पहले दूसरों को समझने की कोशिश कीजिए इसके बाद यह उम्मीद करें कि लोग आप को समझें। सवाल आपको सच के नजदीक ले जाते हैं और अनुमान लगाने से बचा लेते हैं। वास्तविक प्रेम तब है जब आपको किसी को बदलने की जरूरत न रहे। इसलिए सवाल पूछिए।
4 - हमेशा अपना सर्वश्रेष्ठ कर्म करें।
आपका सर्वश्रेष्ठ पल-पल बदलने वाला है। न ही अच्छा समय हमेशा रहता है और ना ही बुरा समय। यह तब अलग होगा जब आप बीमार होने के बजाय स्वस्थ होंगे। किसी भी परिस्थिति में, बस अपना सर्वश्रेष्ठ करें और आप आत्म-निर्णय, आत्म-दुर्व्यवहार और पछतावे से बचेंगे। कुछ पाने के लिए नहीं सिर्फ कर्म करने के लिए सदैव सक्रिय रही है। कार्य के पुरस्कार में नहीं बल्कि स्वयं कार्य में ही संतुष्टि की तलाश करें। मंजिल की बजाए सफर में अधिक देर तक रहने वाली खुशी है। इस पुस्तक में बताए हुए पहले तीन समझौते तभी काम करेंगे जब हम खुद से चौथा समझौता करते हैं अर्थात प्रत्येक कार्य को करने में अपना संपूर्ण प्रयास देते हैं। जब आप इसे एक आदत बना लेते हैं तो अपने आप को एक बदला हुआ इंसान पाते हैं। अभ्यास करने से संपूर्णता आती है।
अंत में एक बार दोहरा लेते हैं। लेखक चार समझौतों की बात करता है जो हमें अपने आप से करने हैं।
1- अपने वचनों को निर्दोष रहने दें। वही कहे जो आप कहना चाहते हैं आप के वचन किसी के जीवन में खुशियां भर सकते हैं और आपकी बात किसी को अवसाद में भी पहुंचा सकते है शब्दों में बहुत शक्ति है इनका इस्तेमाल सोच समझ कर करें।
2-दूसरों के वचनों को व्यक्तिगत रूप से बिल्कुल भी न लें। दूसरे लोग जो राय रखते हैं उनके अपने कारण है वह आपके लिए नहीं है। न हीं उससे आप का मूल्यांकन होता है।
3-धारणा के शिकार न बनें। सच जानने के लिए सवाल पूछें।
4-हमेशा अपना सबसे बेहतरीन करो।
यह चार समझौते हमें सीमाओं से रिहा कर सकते हैं जो हमें विरासत में मिली हैं। इनका इस्तेमाल करके हम अपने जीवन को और बेहतर बना सकते हैं।